Baba Khatu Shyam Janmotsav: आइये जानते हैं साल 2024 में लक्खी मेला और खाटू श्याम का जन्मोत्सव कब है? खाटू श्याम बाबा कौन हैं और उनसे जुड़ी क्या मान्यताएं….
Khatu Shyam Janmotsav 2024: श्री खाटूश्याम जी भगवान कृष्ण के कलियुग के अवतार माने जाते हैं. राजस्थान के सीकर में श्री खाटू श्याम का भव्य मंदिर है. जहां लाखों की संख्या में भक्त श्यामबाबा के दरबार में अपनी हाजरी लगाने आते हैं. मान्यता है कि भगवान के दर्शन मात्र से ही भक्त की हर मनोकामना पूरी हो जाती है. भक्त बाबा श्याम के जन्मदिन और लक्खी मेला का बेसब्री से इंतजार करते हैं. दोनों ही उत्सव को बड़े हर्षोल्लास व धूम-धाम से मनाते हैं. ऐसे में आइये जानते हैं साल 2024 में लक्खी मेला और खाटू श्याम का जन्मोत्सव कब है?
फाल्गुन में लगता है लक्खी मेला
इसके अलावा फाल्गुन (मार्च) में बाबा खाटूश्याम जी का मुख्य मेला लगता है. फाल्गुन माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी को इस मेले का मुख्य दिन होता है. यह मेला षष्ठी से द्वादशी तक लगभग 8 दिनों के लिये आयोजित होता है. इस दौरान देश के कोने-कोने से लाखों भक्त आते हैं और बाबा श्री खाटूश्याम की भक्ति करते हैं. कुछ लोग होली तक यहां पर रुकते हैं. होली के दिन बाबाश्याम के संग होली खेलने के बाद अपने घर प्रस्थान करते हैं.
इस बार मेला 12 मार्च से 21 मार्च तक आयोजित किया जाएगा. वहीं, बाबा श्याम का मुख्य लक्खी मेला 20 मार्च को होगा. इस बार लक्खी मेला 10 दिवसीय होगा. फाल्गुन मास में हर साल लक्खी मेला लगने के पीछे पौराणिक कथा है. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार फाल्गुन मास की द्वादशी तिथि को ही भीम के पौत्र और घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक ने भगवान श्रीकृष्ण के कहने पर अपना सिर काटकर उनके चरणों में डाल दिया था. इसलिए लक्खी मेला फाल्गुन मास की द्वादशी तिथि तक चलती है.
शास्त्रों के मुताबिक, खाटू श्याम का संबंध महाभारत काल से है. वे पांडु के पुत्र भीम के पौत्र थे. वह बहुत शक्तिशाली थे. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब पांडव अपनी जान बचाते हुए वन-वन भटक रहे थे, तब भीम की हिडिम्बा से मुलाकात हुई. हिडिम्बा और भीम के पुत्र हुआ, जिसका नाम घटोत्कच रखा गया. बाद में घटोत्कच का एक पुत्र हुआ, जिसका नाम बर्बरीक रखा गया. बर्बरीक को ही बाद में खाटू श्याम के नाम से जाना जाने लगा.
क्या है पौराणिक कथा?
बर्बरीक ने श्री कृष्ण से महाभारत के युद्ध में भाग लेने की अनुमति मांगी. श्रीकृष्ण युद्ध का परिणाम जानते थे इसलिए उन्होंने बर्बरीक को रोकने के लिए उनसे दान में उनका सिर मांगा. बर्बरीक ने बिना देर किए उन्हें अपना सिर दान कर दिया. बर्बरीक के महान बलिदान से प्रसन्न होकर श्रीकृष्ण ने उन्हें वरदान दिया कि कलयुग में तुम श्याम के नाम से जाने जाओगे. श्रीकृष्ण ने कहा था कि तुम हारे का सहारा बनोगे, जो भी तुम्हारे दरबार आएगा वह कभी खाली हाथ नहीं जाएगा. युद्ध समाप्त होने के बाद श्रीकृष्ण ने बर्बरीक के शीश को जहां रखा था, वह खाटू (वर्तमान राजस्थान राज्य के सीकर जिला) कहा गया. इस तरह बर्बरीक खाटू श्याम बाबा के नाम से पुकारे और पूजे जाने लगे.
खाटू श्याम बाबा की मान्यता
मान्यता है कि कोई भी व्यक्ति अगर सच्चे भाव से खाटू श्याम के नाम का उच्चारण करें तो उसका उद्धार हो सकता है. जो भक्त अगर किसी कारण से खुद राजस्थान के खाटू में बने मंदिर जाकर बाबा श्याम के दर्शन करने नहीं आ पाता, वह पहचान वालों के जरिए एक पेपर पर अपनी मनोकामना या अर्जी भेज सकता है. खाटू श्याम उनके दुखों को दूर करते हैं. मान्यता है कि बाबा श्याम अपने भक्तों की एक दो नहीं लाखों बार मनोकामना पूरी करते हैं इसलिए उन्हें लखदातार के नाम से भी जाना जाता है.